धर्म एवं समाज सुधार आंदोलन
धर्म सुधार आन्दोलन |
19वीं शताब्दी के धर्म एवं समाज सुधार आंदोलनों का प्रभाव क्षेत्र में भी व्यापक रूप से मासूम किया गय। इस बात को, बता देना चाहता हूं कि जिस समय धर्म और समाज सुधार आंदोलन की शुरुआत हुई उस समय बिहार बंगाल का अंग था। अतः बिहार भी इस आंदोलन से प्रभावित हुआ और हिंदू समाज में नवजागरण लाने में ब्रह्म समाज, आर्य समाज, रामकृष्ण मिशन, थियोसोफिकल सोसायटी आदि का योगदान मह्वपूर्ण रहा।
ब्रह्म समाज
ब्रह्म समाज के संस्थापक राजा राममोहन राय थे। जिनका बिहार से संबंध रहा था। उनके सहयोगी में केशवचंद्र सेन की प्रेरणा से पटना और गया में ब्रह्म समाज की शाखाएं खोली गयी।
डॉक्टर कृष्णनंदन घोष द्वारा भागलपुर में 1886 में ब्रह्मसमाज की शाखा स्थापित की गई। बिहार में यह पहली शाखा थी, मगर जल्दी ही पटना, मुंगेर, जमालपुर और अन्य नगरों में भी इसकी शाखाएं खुली। हिंदू धर्म को अंधविश्वास से मुक्त कराने और नैतिक आचरण एवं एकेस्वरवादी विश्वास पर बल देने में इस आंदोलन का मुख्य योगदान रहा। समाज सुधार और शिक्षा के क्षेत्रों में भी प्रगति लाने में इसकी भूमिका रही। बिहार में इसके प्रमुख नेताओं में गुरुप्रसाद सेन, प्रकाश चंद्र राय, हरि सुंदर बोस, निवारणचंद्र मुखर्जी और अघोर कामिनी देवी के नाम शामिल है।
आर्य समाज
आर्य समाज की स्थापना के पश्चात स्वामी दयानंद सरस्वती ने बिहार की यात्रा की थी। बिहार में आर्य समाज मंदिर 1885 में दानापुर में स्थापित हुआ। आरा, पटना, सिवान, मुजफ्फरपुर, मोतिहारी और भागलपुर आदि नगरों में इसकी शाखाएं स्थापित हुई। इस आंदोलन का प्रमुख योगदान शिक्षा और समाज सुधार के साथ-साथ महिलाओं के शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। आर्य समाज में स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए युवकों को प्रेरित करने का काम भी किया। उसके प्रमुख बिहारी नेताओं में बालकृष्ण सहाय, पंडित अयोध्या प्रसाद, डॉ केशवदेव शास्त्री, भवानी दयाल सन्यासी, आदि शामिल थे।
रामकृष्ण मिशन
रामकृष्ण मिशन का भी बिहार में प्रभाव रहा। रामकृष्ण परमहंस द्वारा 1868 में और स्वामी विवेकानंद द्वारा 1886, 1890 ओर 1920 में बिहार की यात्रा की गई थी। 1920 में पहली बार रामकृष्ण विशाखा बिहार में जमशेदपुर में स्थापित किया गया था। पटना में इसकी शाखा 1922 में खुली थी। अध्यात्मा और शिक्षा के प्रचार में इस संस्था का महत्वपूर्ण योगदान रहा। बिहार में इसके प्रमुख नेताओं में जतिंद्रनाथ मुखर्जी और डॉक्टर राजेश्वर ओझा के नाम उल्लेखनीय हैं।
थियोसोफिकल सोसाइटी
थियोसोफीकल सोसाइटी के संस्थापकों में कर्नल ऑलकाट और ऎनी बेसेंट ने 1894 में बिहार की यात्रा की थी। उस समय पटना में या आंदोलन पल्लवित हो रहा था। बिहार में इसके प्रमुख नेताओं में मधुसूदन प्रसाद सरफराज हुसैन खान और पेनेंद्रु नारायण सिन्हा थे। इसमें श्री सिन्हा एक दशक तक ठियोसोफिकल सोसाइटी ऑफ इंडिया के महासचिव भी रहे थे। होमरूल आंदोलन के माध्यम से श्रीमती एनी बेसेंट ने स्वतंत्रता संग्राम को भी नई प्रेरणा प्रदान की जिसका प्रभाव देश में और बिहार में भी महसूस हुआ।
बिहार के मुसलमानों में भी धर्म और समाज सुधार के प्रयास में 19वीं शताब्दी में बहावियों के माध्यम से यह प्रयास आरंभ हुआ। उन्होंने इस्लाम धर्म के मूल उपदेश पर आचरण का आवाहन किया और धर्म में बिदत अथवा विकार का विरोध किया। इस्लाम धर्म के प्रचार के लिए इन्होंने शैक्षिक संस्थाएं संगठित कि जहां पारम्परिक इस्लामी शिक्षा प्रदान की जाती थी। पटना में मदरसा इसलाहल
मुस्लेमीन 1890-91 में मौलाना अब्दुर्रहीम द्वारा सबसे पहले स्थापित किया गया।
स्वतंत्रता आंदोलन के क्रम में बिहारी मुसलमानों में राष्ट्रीय चेतना जागृत हुई। 1917 में मौलाना मोहम्मद सज्जाद ने बिहार में जमीतुल उलेमाय इनकी शाखा संगठित की। खिलाफत और असहयोग आंदोलन के दौरान बिहार के मुसलमानों की एक अत्यंत महत्वपूर्ण संस्था इमारतें शरिया के रूप में 1921 में स्थापित हुआ। स्किन की संस्थापक मौलाना मोहम्मद सज्जाद थे और इसका मुख्यालय पटना के निकट फुलवारी शरीफ में स्थित था। इसके द्वारा मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सामाजिक कार्यों को संचालित करने और सुनियोजित करने के प्रयास किए गए यह संस्था आज भी कार्य है और इसके अधिकार क्षेत्र में पुलिस और बंगाल भी शामिल है।
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