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नियोजन Planning नियोजन का अर्थ एवं अवधारणा Meaning and Concept of Planning


नियोजन Planning 

What is Planning
Planning

नियोजन : अर्थ एवं अवधारणा (Planning : Meaning and Concept)

नियोजन प्रबंध का प्रमुख एवं प्राथमिक कार्य है। (Planning is the primary function of management.) नियोजन व्यवसाय के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है नियोजन के बिना व्यवसाय की सफलता का कामना करना मूर्खता है। 
नियोजन का अर्थ भविष्य के बारे में अनुमान लगाना है। नियोजन इस बात का निर्णय करना है कि, क्या करना है, कहां करना है, कब करना है, कैसे करना है, और किस व्यक्ति द्वारा किया जाना है, इन सभी बातों को नियोजन क्रिया में शामिल किया जाता है। जब हम कोई नया व्यवसाय प्रारंभ करते हैं, तो नियोजन हमारे लिए रीड की हड्डी की तरह होनी चाहिए जो परिस्थिति अनुसार संभाला जा सके।
उर्विक के अनुसार, "नियोजन मूल रूप से कार्यों को सुव्यवस्थित ढंग से करने, कार्य को कराने से पूर्व उस पर मनन करने तथा कार्यों का अनुमानों की तुलना में तथ्यों के आधार पर करने का प्राथमिक रूप में एक मानसिक चिंतन है।"
ऊर्विक का कहने का तात्पर्य यह है कि किसी भी प्रकार के कार्यों हो चाहे वह लाभ के उद्देश्य सेकिया जा रहा हो या सेवा के भाव से प्रत्येक स्थिति में उस कार्य के प्रति सोचना ही नियोजन है और एक सही निर्णय लेकर कार्य को करना सफलता का एक पहला कदम होता है। 
किस प्रकार नियोजन में व्यवसाय के उन सभी परिस्थितियों पर चिंतन करना होता है जो व्यवसाय के जीवन काल में बीतने योग होता है। अर्थात हम कह सकते हैं कि किसी भी व्यवसाय का ब्रह्म और अंत नियोजन की शुरुआत से लेकर अंत तक सम्मिलित होना चाहिए।
दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि किसी भी कार्य को करने से पूर्व उसके बारे में सोच विचार कर एक योजना तैयार करके और उसी के आधार पर कार्य करने से उस कार्य में अधिक सफलता मिलने की संभावना होती है बिना नियोजन बनाएं किसी भी काम को करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है व्यवसायिक संस्थाओं की जटिल समस्याओं का समाधान के लिए तथा संबंधित उद्देश्य तथा लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सोच विचार कर योजना बनाना और उसी योजना के अनुसार कार्य करना और भी अधिक जरूरी होता है जब व्यवसाय में बहुत ज्यादा कंपटीशन हो तो क्योंकि आपसे पहले भी व्यवसाय कर रहे व्यापारी आपको हमेशा बाजार से उखाड़ फेंकने की कोशिश करते रहते हैं इसलिए आज के जमाने में बिना योजना किसी भी व्यवसाय को प्रारंभ करना बहुत ही बहुत मूर्खता भरा कदम होगा।

नियोजन की परिभाषाएं (Definitions of Planning)

1. विलियम एच. न्यूमैन के शब्दों में, "।सामान्यतः भविष्य में क्या करता है, उसेेे पहले से तय करना ही नियोजन कहलाता हैैं।"

2. जार्ज आर. टेरी के शब्दों में, "नियोजन भविष्यय के गर्भ में देखने की विधि या कला है भविष्यय की आवश्यकताओ पूर्व अनुमान लगाना है जिससे निर्धारिित लक्ष्यों की दृष्टि से किए जाने वालेेे वर्तमान प्रयासों को उनके अनुरूप बनाया जा सके।"

नियोजन मे कार्य आरंभ होने से पूर्व या निश्चित किया जाता है कि क्या करना है, कैसे और कहां करना है, किसे करना है और परिणामों का मूल्यांकन कैसे किया जाएगा। इसमें उद्देश्य, नीतियों कार्य विधियों तथा कार्यक्रमों का निर्धारण किया जाता है।

3.   कूण्ट्ज एवं ओ' डोनेल के अनुसार, "नियोजन एक बौद्धिक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत उसे पहले सेे  निर्णय लेेना होता है कि वह क्या करेगा। करने के मार्ग का सचेत निर्धारण है निर्णय को उद्देश्य तथा पूर्व विचारित अनुमानों पर आधारित करनाा है।"





नियोजन के लक्षण अथवा विशेषताएं अथवा प्रकृति (Characteristics or Nature of Planning)

  1. निर्धारित उद्देश्य एवं लक्ष्य होना (Definite Object and Goal):-नियोजन का कार्य निर्धारित लक्ष्य एवं उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाता है अतः प्रत्येक नियोजक इस लक्ष्य को सदैव ध्यान मेंं रखता और उसी के अनुरूप अपनी योजनाएं बनाता है।
  2. पूर्वानुमान लगाना (Forecasting) :- नियोजन का दूसरा महत्वपूर्ण लक्षण भविष्य के बारे में देखना अर्थात पूर्वानमान लगाना है। फेयोल के अनुसार, "नियोजन विभिन्न प्रकार के पूर्वानुमान चाहे पर आपातकालीन हो अथवा दीर्घकालीन सामान्य हो अथवा विशिष्ट संश्लेषण होता है इसके लिए उन्होंने 1 वर्षीय एवं 10 वर्षीय पूर्व अनुमानों की सिफारिश की थी।" "एक कहावत है अपनी वार्षिक योजनाएं बसंत के मौसम में तैयार कीजिए तथा दैनिक योजनाएं प्रातः काल उठते ही तैयार कीजिए।"
  3. विभिन्न वैकल्पिक क्रियाओं में से सर्वोत्तम का चयन (selection of the best among alternative courses of action) नियोजन का महत्वपूर्ण लक्षण विभिन्न वैकल्पिक क्रियाओं में से सर्वोत्तम क्रिया का चयन किया जाना है। प्रबंध के समान विभिन्न वैकल्पिक लक्ष्य, नीतियां, विधियां तथा कार्यक्रम होते हैं। इन्हें पूरा करने के लिए सर्वोत्तम विकल्प का चुनाव करना होता है। उपक्रम की सफलता बहुुत कुछ सीमा तक चयन के आधार पर निर्भर करती है।
  4. नियोजन की सर्वव्यापकता(Pervasiveness of Planning) नियोजन का चौथा लक्षण इसकी सर्वव्यापकता का होना है। कोई व्यक्ति चाहेेे कंपनी का अध्यक्ष हो अथवा साधारण फोरमैन संगठन के प्रत्येक स्तर पर नियोजन की आवश्यकताा पड़ती।
  5. प्राथमिक कार्य (Primary Function) नियोजन प्रबंध का प्राथमिक कार्य है। किसी भी प्रबंध की प्रक्रियाा में नियोजन को सबसे पहले एवंंं प्रमुख स्थान दिया जाता है। अन्य सभी कार्य नियोजन के पश्चात ही संपन्न किए जाता है। संस्थाा का लक्ष्य, जिसकी पूर्ति के लिए समस्त प्रबंध कि क्रिया संपन्न होती है। नियोजन द्वारा ही निर्धारित कियाा जाता। इस लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रबंध के अन्य सभी कार्य संपन्नन किए हैं।

नियोजन के उद्देश्य (Objective of Planning)

  1. भाभी कार्यों में निश्चितता - नियोजन के माध्यम से संस्था की भावी गतिविधियों में अनिश्चितता के स्थान पर निश्चतता लाने का प्रयास किया जाता है।
  2. विशिष्ट दिशा प्रदान करना - नियोजन द्वारा किसी कार्य विशेष की भावी रूपरेखा बनाकर उसे एक ऐसी विशेष दिशा में प्रदान करने का प्रयास किया जाता है जो कि इसके अभाव में लगभग असंभव प्रतीत होती है।
  3. साम्य एवं समन्वय की स्थापना - नियोजन द्वारा उपकर्म की विभिन्नन गतिविधियों मे साम्य एवं समन्वय स्थापित किया जाता है।
  4. प्रबंध में मितव्ययिता - उपक्रम की भावी गतिविधियों की योजना के बन जानेे से प्रबंध का ध्यान उसे कार्यान्वित करने की और केंद्रित हो जाताा है, जिसके फलस्वरूप क्रियाओं में अपव्यय के स्थान पर मितव्ययिता आती है।
  5. पूर्वानुमान लगाना - पूर्वानुमान नियोजन का सार है। नियोजन का उद्देश्य भविष्य केेे संबंध मे पूर्वनुमान लगाना है।
  6. निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति करना - नियोजन का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य निर्धारित लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए निरंतर  प्रयास करते रहना चाहिए।
  7. प्रतिस्पर्धा पर विजय पाना - वर्तमान समय में बाजार में सभी प्रकार के व्यवसायियों में बहुुुत अधिक  प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है प्रतिस्पर्धााा के क्षेत्र मेंं विजय पाने मेंंंंं सहायक सिद्ध होता।
  8.  कुशलता में वृद्धि करना नियोजन का एक मूलभूत उद्देश उपकर्म की कुशलता मेंें वृद्धि करना है।
  9. जानकारी देना - नियोजन एक  सुविचाारित कार्यक्रम होता है जिससे उपक्रम के आंतरिक एवं बाहरी व्यक्तियोंं को उपक्रम के सम्बन्ध में समुचित सूचना एवं जानकारी प्राप्त होती है।
  10. भावी जोखिम में कमी - नियोजन उपक्रम की भावी जोखिम एवंंं संभावनाओं को परखता एवं भावी जोखिमों में कमी लात है।
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