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Bihar Board Questions for Commerce

उघमिता

ENTREPRENEURSHIP

Entrepreneurship board question for 12th

BSEB तथा CBSC 12th BOARD 
में पूछे गए प्रश्नों का संग्रह।

Q. उघमी कौन है?

A. वास्तव में व्यापारी ही उधमी है। एक व्यापारी ही सच्चा उधमी होता है जिसे अक्सर किसी अवसर की तलाश होती है जिसे पहचान कर नए कार्यों का सृजन करता है या फिर पहले से चली आ रही क्रियाकलापों को एक नया रूप देकर लोगों के सामने प्रस्तुत करना एक उधमी ही करता है। इसलिए उधमी व्यापारी है, दुकानदार हैं, दुकानदार ही उधमी है।

Q. अवसर लागत क्या है?

A. अवसर लागत क्या है? इस प्रश्न का उत्तर से पहले यह जानना जरूरी है कि अवसर क्या है?
वास्तव में, अवसर एक मौका है। जो उधमी के लिए तकदीर की तरह होती है। अवसर एक मौका सभी के जीवन में देता है लेकिन इसे समय रहते जो भी पहचान कर व्यापार में कदम रखता है सफलता उसकी कदम चूमती।
 अवसर का अर्थ परिस्थिति के सहयोग से लाभ उठाने से है। अवसर का अर्थ एक संयोग से जो जीवन में एक बार सभी को आता।
कुछ लोग इसी अफसर को पहचान कर इससे लाभ उठाते हैं लाभ उठाने वाला व्यक्ति ही उधमी कहलाता है।
अवसर लागत क्या है अब इस प्रश्न का जवाब साधारण था दिया जा सकता है। अवसर लागत हुआ है जिसमें समय मौका इन सभी का एक संयोग होता जो कि व्यक्ति के जीवन में एक बार जरूर आता है और उस युद्ध में पहचान कर अपने जीवन कर तकदीर लिखता है।

Q. अवसर कितने प्रकार के होते है?

A. सामान्य तौर पर अवसर दो प्रकार के होते हैं:
     1. पर्यावरण में विद्यमान अवसर : कुछ अवसर ऐसे होते हैं जो बाजार में पहले से मौजूद होता है,: जैसे कागज, कपड़ा, जूता आदि के करखाने मौजूद होते। जिसे नवीनतम रूप देकर साहसी कुछ नयापन लाने की कोशिश हमेशा करते रहता है और इसे ही पर्यावरण में विद्यमान अवसर कहते हैं जिसे उधमी हमेशा ढूंढता है कि कैसे किसी वस्तु की कमी को दूर किया जाए।
    2. निर्मित अवसर : ऎसे अवसर पहले से मौजूद नहीं होते है लोगो की रूची उपभोक्ताओं की फैशन, तकनीकी परिवर्तन, परिस्थिति के अनुसार नये अवसर का जन्म होता है और इसे ही निर्मित अवसर कहते है।

Q. उघमीतिय अवसरों की पहचान करने के लिए किन किन बातों पर ध्यान देना चाहिए?

A. उधमी विभिन्न संभावनाओं का विश्लेषण करें सार्वजनिक लाभ देने वाली संभावना का चुनाव करता है व्यवसायिक संभावना तभी व्यवसायिक अवसर मानी जाती है जब व व्यवसायिक दृष्टिकोण से लाभप्रद एवं संभव हो। इस संबंध में कहां जाता है कि व्यवसाय का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना ही होता है अर्थात व्यवसाय का मतलब है लाभ यानी कम से कम लागत में अधिक से अधिक लाभ का उद्देश्य कि व्यवसाय व्यवसायियों के लिए अधिक लाभप्रद होती है। इस प्रकार इस संबंध में दो महत्वपूर्ण बातों का होना आवश्यक है जो व्यवसायिक संभावनाओं को व्यवसायिक अवसरों में बदलती है, जो इस प्रकार है-
1. अनुकूल बाजार मांग अथवा बाजार में उपलब्ध आपूर्ति पर मांग का आधिक्य
2. विनियोग पर्याप्त प्रत्याय जोकि सामान्यतया सामान्य प्रत्याय दर एवं जोखिम प्रीमियम की दर के योग के बराबर होता है। उपयुक्त दोनों कसौटीयो तकनीकी उत्पादन वाणिज्यक एवं प्रबंधकिए प्रारूप में संभव होना चाहिए अन्यथा उस पर प्रत्याय दर की कोई उपयोगिता नहीं रह जाएगी।

Q. सूक्ष्म परीक्षण किसे कहते हैं?

A. सूक्ष्म परीक्षण एक प्रकार की जांच करने की कला है। परीक्षण में छोटी-छोटी बारीकियों को देखना होता। किसी तथ्य या पहलू की सूक्ष्मतम गहन जांच सूक्ष्म परीक्षण कहलाती है।जब डॉक्टर किसी बीमारी को ठीक से नहीं पकड़ पाता है तो वह मरीज को स्कैनिंग की सलाह देता है जहां मरीज के संबंधित अंग की सूक्ष्मतम जांच करके उसकी प्रत्येक गतिविधि की जानकारी रिपोर्ट के माध्यम से डॉक्टर को सौंपी जाती है। अब इस रिपोर्ट के आधार पर बीमारी का सही इलाज संभव हो पाता है।
साहसी अपने पर्यावरण की विभिन्न गतिविधियों का सूक्ष्मतम अध्ययन करता है और तब किसी निष्कर्ष पर पहुंचता है, कि उसे क्या, कब और कैसे करना है।

Q. पर्यावरण के कितने प्रकार हैं?

A. पर्यावरण एक सामान्य बात है अर्थात पर्यावरण का मतलब माहौल से है। व्यापारी क्षेत्र में पर्यावरण मुख्यतः दो प्रकार के हैं- 
1. आंतरिक पर्यावरण : - आंतरिक पर्यावरण के अंतर्गत वे घटक आते हैं जिन पर साहसी का नियंत्रण होता है जैसे: भूमि, उत्पादन, पूंजी, श्रम, भवन, संगठनात्मक, ढांचा आदि।
2. बाहरी पर्यावरण: - इसके अंतर्गत वे घटक आते हैं जिन पर साहसी का कोई नियंत्रण नहीं होता जैसे: आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक, तकनीकी, प्रतियोगी, ग्राहक, आपूर्तिकर्ता, बाजार, आदि। यह घटक साहसी के कार्यक्रम एवं निर्णय को प्रभावित करता है।

Q. पर्यावरण को प्रभावित करने वाले किन्ही दो आर्थिक घटकों का वर्णन करें।

A. पर्यावरण की सूची जांच करने से पहले उधमी को निम्न घटकों पर ध्यान देना होगा जो पर्यावरण को प्रभावित करते हैं। जिसमें दो इस प्रकार से हैं:- 
1. आर्थिक घटक : ऐसे तो प्रत्येक घटक पर्यावरण का कुछ ना कुछ प्रभाव अवश्य डालता है किंतु उद्योग व्यवसाय पर आर्थिक घटक का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है। ऐसा इसलिए कि उद्योग व्यापार स्वय एक आर्थिक क्रिया है। व्यवसाय के आर्थिक पर्यावरण को प्रभावित करने वाले मुख्य आर्थिक घटक निम्न प्रकार है:-
a. आर्थिक विकास का स्तर
b. आर्थिक नीतियां
c. ब्याज दर एवं आयकर दर
d. बाजार की स्थिति
2. सामाजिक घटक:- व्यवसायिक पर्यावरण को सामाजिक घटक भी काफी हद तक प्रभावित करते हैं। यदि मान समाज में शिक्षा स्तर, जनसंख्या का आकार, लिंग अनुपात, रिती- रिवाज, परंपराएं लोगों की रुचि, आदत, फैशन, शहरीकरण, जीवनयापन, के तौर तरीके लोगों की आय का स्तर आदि ऐसे घटक हैं जिन से पर्यावरण प्रभावित होता है। इनकी अनदेखी साहसी जीवन यापन के तौर तौर तरीके के कारण वेबसाइट जगत को बहुत सारे भयंकर परिणाम झेलने पड़ते हैं. अतः साहसी को अपनी रणनीति इन घटकों को ध्यान में रखकर ही तय करनी चाहिए। उदाहरण के तौर पर उत्पाद का रंग भी लोगों के विश्वास सामाजिक मूल्य एवं संस्कृति के साथ जुड़ा होता है। कहीं कुछ रंग को शुभ तो कहीं रंग अशुभ माना जाता है।मुस्लिम देशों में हरा रंग को शुभ माना जाता है जबकि मलेशिया में इसे अशुभ माना जाता है सफेद रंग को शांति का प्रतीक समझा जाता है जबकि चीन तथा कोरिया में यह रंग मृत्यु तथा विलाप का प्रतीक माना जाता है। अतः साहसी को जैसा देश वैसा भेष वाली नीति अपनानी पड़ती है।

Q. विपणन अनुसंधान क्या है?

A. विपणन अनुसंधान के अंतर्गत सभी विपणन क्रियाओं का गहन अध्ययन किया जाता है। इसके अंतर्गत प्राय: यह जानने का प्रयास किया जाता है कि उपभोक्ता क्या चाहता है? उसे किस मूल्य पर व कितनी मात्रा में वस्तु की आवश्यकता होगी? उसे बस्ती की कब व कितनी मात्रा में बस एकता होगी? इसके अतिरिक्त किस प्रकार का विज्ञापन एवं वितरण व्यवस्था पसंद करेगा।

Q. विपणन मिश्रण की अर्थ बतावे।

A. प्रतियोगी बाजारों में वस्तुओं या सेवाओं का वितरण करते समय निर्माता के समक्ष अनेक कठिनाइयां आती है। प्रतियोगी निर्माता उसके लिए विषम बाधाएं उत्पन्न करते रहते हैं। उपभोक्ताओं की रुचियां और जरूरतों में निरंतर परिवर्तन होता रहता है। उधर सरकार भी व्यवसायिक क्षेत्र में सामाजिक हितों की पूर्ति के लिए हस्तक्षेप करती है। कुल मिलाकर बाजार में वस्तुओं का विपणन निर्माताओं के लिए एक चुनौती बना जाता है।
                       उपर्युक्त कठिनाइयां बाधाओं और चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए निर्माता ठीक उसी तरह दांवपेच लगाता है जैसे कि एक पहलवान अखाड़े में कुश्ती जीतने के लिए लगाता है। निर्माता द्वारा अपनाई गई उस रणनीति को विपणन नीति नीति कहां जाता है।
विपणन मिश्रण निर्माता द्वारा तैयार की गई विपणन नीति नीति का अंग होता है। इसमें वस्तु, योजना, ब्रंड, ट्रेडमार्क, पैकेजिंग, मूल्य निर्धारण, वितरण मार्ग, विक्रय शक्ति, विज्ञापन विक्रय, संवर्धन, भौतिक वितरण, विपणन अनुसंधान, आदि प्रमुख तत्वों को सम्मिलित किया जाता है।

Q. बजार व्यवहायर्ता क्या है?

A. किसी भी वस्तु के उत्पादन शुरू करने से पहले उसके बारे में बाजार में पता लगाना ही बाजार व्यवहारिकता कहलाता है। एक साहसी अपने लिए उत्पाद या सेवा का चयन करता है। अब हुआ अपनी कल्पना अर्थात सोच तो आकार साकार रूप देने की तैयारी में लग जाता है। उसके उत्पाद के लिए जो कर्म बनाई जाएगी वह कैसी होगी, कहां होगी, कब होगी, कर्म कैसे संचालित होगी क्या लागत आएगी विक्रय मूल्य कितना होगा इसका असर अनुप्रति योगियों पर क्या होगा कैसे पैकिंग होगी विज्ञापन कैसा होगा वितरण की व्यवस्था क्या रहेगी खर्च के लिए उत्पादन हेतु कहां से कितना संसाधन प्राप्त हो सकेगा लाभ की क्या गुंजाइश रहेगी नाखून से बाल तक की पूरी संभावनाओं को कागज पर लिखकर अध्ययन करना चाहिए। इस अध्ययन से ही साहसी को पता चलेगा कि उसके उत्पाद की कल्पना एवं विचार वास्तव में व्यवहारिक है या नहीं? इन्हीं बातों के अध्ययन को बाजार व्यवहायेता अध्ययन कहा जाता है।

Q. उपकर्म के चुनाव में साहसी को किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?

A. उपकर्म के चुनाव में साहसी को जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए उन्हें निम्नलिखित बातों को अध्ययन करके ही कोई निर्णय लेना चाहिए जैसे कुछ ध्यान देने योग्य बातें इस प्रकार है:- 

1. स्थापना में आसानी

यदि कोई उपकरण जल्द और आसानी से स्थापित करना हो तो एक एकाकी व्यापार ठीक रहता है। साझेदारी फर्म स्थापित करने के लिए या सहकारी समिति या संयुक्त पूंजी वाली कंपनी स्थापित करने के लिए अनेक वैधानिक औपचारिकताओं का पालन करते हुए इसका पंजीकरण करना पड़ता है। अत: साहसी को सोच विचार कर किसी एक का चुनाव करना चाहिए क्योंकि सभी स्वरूपों के अपने-अपने गुण दोष होते हैं।

2. व्यवसायिक क्रिया के प्रकार

साहसी को अपनी व्यवसाई क्रिया के अनुरूप ही उपकरण का चुनाव करना चाहिए। यदि व्यापार छोटे स्तर काया व्यक्तिगत सेवा जैसे नई दर्जी, जोहरी आदि से संबंधित हो तो एकाकी व्यापार का चयन किया जाना चाहिए। यदि व्यापार बड़े पैमाने या निर्माण आदि से जुड़ा हो तो साझेदारी या कंपनी कर्म ठीक रहेगा।

3. प्रत्यक्ष नियंत्रण

यदि साहसी अपने व्यापार पर प्रत्यक्ष नियंत्रण रखना चाहता है, दूसरे का आस्था चेक नहीं पसंद करता है तो उसे एकाकी व्यापार या निजी कंपनी वाले उपकरण का चुनाव करना चाहिए।

4. परिचालन का क्षेत्र

यदि व्यापार के लिए परिचालन का क्षेत्र छोटा है अर्थात स्थानीय है तो एकाकी व्यापार का चुनाव उपयुक्त होगा किंतु परिचालन का क्षेत्र बड़ा अर्थात राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय स्तर का है तो अपना उपक्रम कंपनी के रूप में रखना चाहिए।

5. पूंजी की उपलब्धता

व्यवसाय के लिए जितनी पूंजी चाहिए, उसके लिए साहसी यदि स्वयं सक्षम है तो उसे एकाकी व्यापार का उपकरण चुनना चाहिए। यदि ऐसा नहीं हो तो साझेदारी उपयुक्त होगी किंतु इससे भी अधिक पूंजी की आवश्यकता होने पर कंपनी प्रारूप वाला उपकर्म ठीक रहेगा।


Q. उपकर स्थापना का क्रियान्वयन आप कैसे करेंगे?

उपकरण स्थपना का क्रियान्वयन के लिए कुछ इस प्रकार से व्यवहारिक कार्य में साहसी उपकरण की स्थापना के लिए निम्नांकित मुख्य कार्य करते हैं:-
1. स्थान व्यवस्थित करना

उपकरण जिस स्थान पर स्थापित होना है, वहां उन सारी सुविधाओं को व्यवस्थित कर लेना चाहिए जो कर्म के लिए आवश्यक है। जैसे इस स्थान तक पहुंचने के लिए आवागमन की व्यवस्था, बिजली, पानी, आदि की व्यवस्था कर लेनी होगी।

2. भवन निर्माण: -

उपकर्म के लिए कभी-कभी औद्योगिक क्षेत्र में सरकार द्वारा ही अस्थान एवं भवन प्रदान किया जाता है जिसके लिए किराया लिया जाता है। यदि ऐसा नहीं है तो निजी एजेंसी से भी अपनी आवश्यकतानुसार जगह और भवन भाड़े पर लिया जा सकता है। उत्पादन की प्रक्रिया उपकरण एवं शनि यंत्र की आवश्यकता अनुसार भवन का निर्माण किया जाना चाहिए। भवन निर्माण भविष्य में विस्तार को ध्यान में रखकर करना हितकारी होता है।

3. मशीन एवं यंत्र की स्थापना

मशीन एवं यंत्र की खरीदी सावधानीपूर्वक करनी चाहिए और आरंभ में ही इसकी स्थापना विक्रेता कंपनी की देखरेख में की जानी चाहिए ताकि उपक्रम के कर्मचारी इसे देख समझ सके फिर इसके संचालन तक उक्त कंपनी के प्रतिनिधि को रोके रखना चाहिए जिससे कि किसी भी प्रकार की गड़बड़ी को तुरंत ठीक किया जा सके।

4. जांच उत्पादन

संयंत्र स्थापित हो जाने के बाद थोड़े कच्चे माल से उत्पादन की प्रक्रिया आरंभ कर देनी चाहिए और देखना चाहिए कि इसे क्या कमी रह गई है। ऐसा कर लेने से उत्पादन तैयार को बाजार में भेजने से पहले उसकी जांच हो जाती है।यदि कोई सुधारात्मक उपाय की आवश्यकता हुई तो या भी संभव हो पाता है।

5. पैकिंग एवं वितरण व्यवस्था

जाति पादन के बाद साहसी को या देखना चाहिए कि वस्तु बाजार में वितरण करने के लिए सही तरह से उसे पैकिंग की व्यवस्था की जानी चाहिए तैयार वस्तु के बाजार में इस तरह से प्रस्तुत करना चाहिए कि वस्तु सही तरीके से बाजार में आकर्षित हो।


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