प्रथम विश्व युद्ध जर्मनी के लिए एक अभिशाप प्रमाणित हुआ। वहां के लोगों को राष्ट्रीय अपमान सहना पड़ा, उन्हें हर तरह की हानि आर्थिक, औपनिवेशिक, सैनिक आदि - उठानी पड़ी। वर्साय की संधि की शर्तों उन पर जबरदस्ती लादी गई जिससे वे तिलमिला उठे। जर्मनी की लोकतांत्रिक सरकार को वहां के जनता घृणा की दृष्टि से देखती थी क्योंकि इसकी स्थापना मित्र राष्ट्रों के निर्देशन में निर्मित बाइमर संविधान के अंतर्गत हुई थी। यह अपने दायित्व का ठीक से निर्वाह नहीं कर सकी। जर्मनी के पूंजीपति वहां समाजवाद की बढ़ती हुई लोकप्रियता से घबरा उठे विश्व आर्थिक संकट ने जर्मनी की आर्थिक समस्या व्यवस्था को तहस नहस कर दिया। वहां सभी लोग यह महसूस करने लगे कि एक कर्मठ एवं शक्तिशाली व्यक्ति ही जर्मनी को रक्षा कर सकता है। सौभाग्य बस उन्हें ऐसा एक व्यक्ति मिला भी गया और उसे दूर करने के लिए वह अच्छा था। ऐसी परिस्थिति में उसे जर्मनी के सभी वर्गों से सहयोग एवं सहायता भी मिली।
हिटलर
नेशनल सोशलिस्ट पार्टी या राष्ट्रीय समाजवादी दल के संस्थापक एडोल्फ हिटलर तथा उसके कुछ साथी थे।
हिटलर का जन्म 20 अप्रैल 1889 को ऊपरी ऑस्ट्रिया में हुआ था।
वह सीमा शुल्क अधिकारी का पुत्र था। आर्थिक कठिनाइयों के कारण वह अपनी स्कूली शिक्षा भी पूरा नहीं कर सका। जब वह एक अनुभवहीन युवक था उसी समय वह ऑस्ट्रिया की राजधानी वियेना चला गया और वहां उसने भवन निर्माण कला की शिक्षा लेना चाह किंतु वियेना की चित्रकला अकादमी की प्रवेशिका परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया और इसलिए उसमें वह प्रवेश नहीं पा सका। इसलिए अपने जीवन यापन के लिए वह नकशानवीश बन गया। साथ ही, वह मकानों का आंतरिक अलंकरण का काम करने लगा। वह धीरे-धीरे जर्मनी की राजनीति में भी रुचि लेने लगा। उसने देखा कि 1925 ईस्वी में राष्ट्रपति एवर्ट, जो नवंबर 1922 से ही राष्ट्रपति था, की मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर हिंडेनबर्ग 77 वर्ष की अवस्था में जर्मन गणराज्य का राष्ट्रपति बन गया। उसने यह भी देखा कि 1925 ईस्वी से 1928 ईस्वी के बीच में जर्मनी में लूथर तथा मार्कस अपने मंत्रिमंडल बनाया। लूथर 1925 ईस्वी से 1926 ईस्वी तक और मार्कस 1926 ईस्वी से 1928 ईस्वी तक प्रधानमंत्री रहे। 1928 ईस्वी में हरमैन मूलर ने मंत्रिमंडल का निर्माण किया और वह जर्मन गणतंत्र का चांसलर बना। उसने यंग योजना को स्वीकार किया जिससे उसकी काफी आलोचना हुई। आयकर को लेकर राइक्स्टग मैं काफी विवाद हुआ। बेकारी की समस्या भी विकट हो गई। अतः मार्च 1930 में मूलर ने इस्तीफा दे दिया। केंद्रीय दल का नेता डॉक्टर का खंडन किया और जर्मनी पर क्षतिपूर्ति का जो भार दिया गया था उसको उसने अमान्य बताया। वह अन्य राष्ट्रों के साथ जर्मनी की सैन्य शक्ति की समता के पक्ष में था। वह अन्य सामाजिक और आर्थिक सुधार भी चाहता था। वाह विशाल न्यासों तथा वृहत विभागीय गोदामों का राष्ट्रीयकरण करने के पक्ष में था। वह चाहता था कि सरकार सभी को रोज देने के लिए वचनबद्ध हो हो और साथ ही सभी के जीवन स्तर को ऊंचा करने के लिए भी प्रयत्न करें। निर्धन व्यक्तियों पर करो का भार कम और धनी व्यक्तियों पर अधिक हो इस बात का भी वह प्रचार करता था। हिटलर की मांग थी कि जर्मनी में एक शक्तिशाली केंद्रीय सत्ता की स्थापना हो। जर्मनी के संसदीय शासन का हुआ कट्टर विरोधी था और साथ ही सोवियत रूस की साम्यवादी सरकार का कठोर आलोचक भी था हिटलर ने अपने इन विचारों को युगों का कार्यक्रम की संज्ञा दी।
ब्रर्निंग मंत्रिमंडल : सितंबर 1930 से मई 1932 -
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